बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
अथवा
भ्रूण के विकास पर पड़ने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
(Factors Influencing pre-natal Development )
1. माँ का आहार (Maternal Nutrition ) - गर्भकालीन अवस्था में बालक अपना आहार माँ से Placenta के द्वारा प्राप्त करता है। अतः आवश्यक है कि माँ का आहार सन्तुलित हो और माँ के आहार में सभी आवश्यक पोषक तत्व विद्यमान हों। माँ के आहार में प्रोटीन, फैट्स और कार्बोहाइड्रेट्स - तीनों ही उपयुक्त मात्रा में आवश्यक हैं। प्रोटीन्स से टिशूज का निर्माण होता है। फैट्स शरीर में ईंधन का कार्य करते हैं तथां कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को शक्ति प्रदान करते हैं। कुछ गर्भवती स्त्रियों की यह धारण होती है कि गर्भकालीन अवस्था में उन्हें दो जीवों के लिए भोजन करना होता है— एक, स्वयं के लिए तथा दूसरा बच्चे के लिए। इस प्रवृत्ति से गर्भस्थ शिशु मोटा हो सकता है और जन्म के समय गर्भवती स्त्री को काफी परेशानी हो सकती है। आवश्यक है कि गर्भवती स्त्री सन्तुलित आहार ले जिससे गर्भस्थ शिशु का विकास सामान्य ढंग से चल सके।
2. माँ का स्वास्थ्य (Maternal Health) या माँ की बीमारी - गर्भवती स्त्रियों की बीमारियाँ भी गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं। कुछ गम्भीर संक्रामक रोग; जैसे— सिफलिस या गॉनोरिया (Syphilis or Gonorrhea) यदि गर्भवती स्त्री को है, तो इसके गर्भस्थ शिशु पर अनेक परिणाम पड़ते हैं; उदाहरण के लिए, इन बीमारियों के कारण गर्भस्थ शिशु गर्भ से गिर सकता है; यदि गर्भ से नहीं गिरता है, तो जन्म के उपरान्त इस प्रकार का बालक जन्म से अन्धा, जन्म से बहरा, मानसिक दुर्बल या कोई और गत्यात्मक विकार (Motor Disorders) हो सकते हैं। इसी प्रकार यदि गर्भवती स्त्री को पहले या दूसरे महीने में मीजिल्स निकल आये, तो गर्भस्थ शिशु के हृदय और कानों पर प्रभाव पड़ सकता है।
गर्भवती स्त्री यदि गर्भ के दिनों में कुनेन (Quinine) औषधि का जिसका प्रयोग मलेरिया आदि रोगों में किया जाता है) प्रयोग अधिक करती है, तो निश्चय ही बालक के श्रवण पर इसका प्रभाव पड़ता है, बालक बहरा हो सकता है। इसी प्रकार से सिर दर्द और शरीर-दर्द की गोलियाँ यदि गर्भवती स्त्री अक्सर लेती रहती हैं; तो इस प्रकार की औषधियाँ गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क की ऑक्सीजन सप्लाई को प्रभावित करती हैं, जिससे गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क को क्षति पहुँच सकती है।
3. शराब और तम्बाकू ( Alcohol & Tobacco) - गर्भवती स्त्री यदि लगातार शराब और तम्बाकू का प्रयोग गर्भकालीन अवस्था में करती रहती है, तो इसका भी गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है; उदाहरण के लिए, अधिक मदिरापान के प्रभाव में देखा गया है कि गर्भस्थ शिशु में बेचैनी और हृदय की धड़कनें अक्रमिक हो जाती हैं। तम्बाकू का अधिक सेवन भी हानिकारक है। तम्बाकू में निकोटीन होती है, जो एक शक्तिशाली Narcotic Poison है।
4. माता-पिता की आयु (Maternal Age) - लोगों में यह आम धारणा है कि अधिक आयु के माता-पिता की सन्तानें अधिक बुद्धिमान होती हैं, परन्तु यह धारणा बहुत ठीक नहीं है। हरलॉक (1974) का विचार है कि, स्त्री की आयु 21 वर्ष उपयुक्त है। इस आयु से पूर्व स्त्रियों का जनन अंग पूर्णतः परिपक्व नहीं होता है। यद्यपि बालक का जन्म तो 15 साल की लड़कियों में भी होता देखा जाता है। इसी प्रकार से स्त्री की आयु 28 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस आयु के बाद गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास में अनेक अनियमितताएँ आ सकती हैं। बुद्धि परीक्षण सम्बन्धी अध्ययनों में देखा गया कि प्रतिभाशाली बालकों के पिता की औसत आयु का विस्तार 30 से 34 वर्ष था।
5. माँ की संवेगात्मक अनुभूतियाँ (Maternal Emotions ) - गर्भवती स्त्री की संवेगात्मक अनुभूतियों का गर्भस्थ शिशु के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वह गर्भवती स्त्रियाँ, जो अपने गर्भधारण से प्रसन्न नहीं हैं, उन्हें अक्सर इस अप्रसन्नता के कारण उल्टियाँ होने लगती हैं या जी मिचला रहता है। कई बार यह भी देखा गया है कि गर्भवती स्त्रियाँ जब गर्भधारण पर प्रसन्न नहीं होती तो वे गर्भ गिराने के लिए दवाइयों का प्रयोग करती हैं। इस अवस्था में जब गर्भ सफलता से नहीं गिरता है तो कई बार देखा गया है कि असफल गर्भपात से गर्भस्थ शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास में विकार आ जाते हैं।
6. माता-पिता की अभिवृत्तियाँ (Attitudes of Mother & Father) - माता-पिता तथा परिवारीजनों की अभिवृत्तियों का प्रभाव भी गर्भस्थ शिशु के विकास पर पड़ता है; परन्तु यह प्रभाव प्रत्यक्ष न होकर अप्रत्यक्ष होता है। कई बार नवविवाहित दम्पत्ति तुरन्त बच्चा नहीं चाहते हैं क्योंकि तुरन्त बच्चे से उनका वैवाहिक समायोजन (Marital Adjustment) बिगड़ता है। इस अवस्था में यदि बच्चा हो जाता है तो माता-पिता उसे न चाहने के कारण अधिक परवाह नहीं करते जिससे शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। कुछ माता-पिता अपने होने वाले बच्चे के सम्बन्ध में कल्पना बना लेते हैं यदि इनका स्वप्न बालक (Dream Child ) स्वस्थ, सुन्दर और कुशाग्र बुद्धि वाला है। और वास्तव में उत्पन्न होने वाला बालक इस स्वप्न बालक (Dream Child) के विपरीत विशेषताएँ रखने वाला है, तो ऐसी अवस्था में माता-पिता के बच्चे के प्रति सपने जाते हैं। वह बेमन से अपने बच्चों की सेवा करते हैं। फलस्वरूप उनका विकास प्रभावित होता है । कुछ माता-पिता बच्चा नहीं चाहते हैं; क्योंकि बच्चों से काम बढ़ जाता है। साथ ही खर्च भी बढ़ जाता है। इस प्रकार की अभिवृत्ति वाले दम्पत्ति के जब बच्चा होता है तो भी वह अपने बच्चों का सामान्य और स्वस्थ ढंग से लालन-पालन नहीं कर पाते हैं। फलस्वरूप बच्चों का सामान्य और स्वस्थ ढंग से लालन-पालन नहीं कर पाते हैं। फलस्वरूप बच्चों में विकास सम्बन्धी विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि माता-पिता की अभिवृत्तियाँ गर्भस्थ शिशु के विकास को उस समय अधिक प्रभावित करती हैं, जब बच्चों का जन्म होता है।
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